श्री राम जानकी का विवाह आज भी महत्वपूर्ण है । यह सभी देवी देवताओं के लिए जहां अलौकिक छटा के दर्शन करने का दिन है, वहीं कुंवारी कन्याओं के लिए अभिलाषा का दिन है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का पूरा जीवन हर मनुष्य के लिए प्रेरणादाई है । उनका जीवन का हर क्षण कोई ना कोई संदेश देता है । ऐसे में राम जानकी विवाह भी सभी लोगों में के लिए विशेष अनुकरणीय माना जाता है ।
हेमंत ऋतु के पावन मार्गशीर्ष मास में ब्रह्मा जी द्वारा निर्देशित शुक्ल पंचमी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और जानकी नंदिनी सीता जी का पाणि ग्रहण संस्कार महर्षि विश्वामित्र की आज्ञा अनुसार वैदिक परंपराओं के रक्षणार्थ पूरे विधि-विधान से संपन्न हुआ था । उसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी हिंदू धर्म संस्कृति से जुड़े लोग परंपरागत श्रीराम-जानकी विवाह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाते हैं ।
आज भी इस संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होते हैं कि आधुनिक दिनचर्या में कहीं हमारी प्राचीन वैदिक परंपराएं और मान्यताएं विलुप्त ना हो जाएं । इसलिए विश्वामित्र जी ने विदेह राजा जनक जी और राजा दशरथ को आदेश दिया, ‘हे राजन, यद्यपि जनक जी के संकल्प अनुसार धनुष भंग के पश्चात श्रीराम-सीता का विवाह संपन्न हो चुका है । परंतु आप लोगों को धार्मिक और वैदिक परंपराओं की रक्षा के लिए अपने राज्य के ब्राह्मणों, कुल गुरुओं और कुल वृद्ध जनों से परामर्श ले कर अपने वंश की परंपरा अनुसार वैदिक रीति से पुनः श्री राम सीता का विवाह संपन्न करना होगा ।’ जिसके लिए मार्गशीर्ष मास की पंचमी शुक्ल तिथि चुनी गई थी ।
त्रेता युग में जब श्री राम और सीता जी का विवाह संपन्न हो रहा था, तो उस दिन की छठा अद्भुत और अवर्णनीय है । सभी देवी देवता यक्ष, गंधर्व, किन्नर अत्यंत प्रसन्न और लालायित थे । उमा सहित भगवान शंकर बारात में दूल्हे के रूप में भगवान श्री राम के सुंदर श्याम कमनीय मनोरम रूप-सौंदर्य को देख कर हर्षित- पुलकित हो रहे थे ।
ब्रह्मा जी अपने आठ नेत्रों, कार्तिकेय जी 12 नेत्रों से तथा देवराज इंद्र अपने सहस्त्र नेत्रों से भगवान के इस मोहक रूप का मंत्रमुग्ध होकर आनंद ले रहे थे । देवताओं के आश्चर्य को भांपते हुए भगवान शिव ने कहा, ‘आप सब धैर्य पूर्वक विवाह उत्सव का आनंद लें और अचंभित ना हो क्योंकि श्रीराम ही परम तत्व हैं । यही विष्णु और सीता इन्हीं की लक्ष्मी है । यही कृष्ण है और सीता उनकी प्रणववल्लभा राधा है । यही नारायण है और सीता नारायणी ।’ महर्षियों ने भी राम जानकी विवाहोत्सव को संपूर्ण धारा के लिए महत्वपूर्ण क्षण बताया है । इसलिए इस विवाह प्रसंग का श्रवण करने, वाचिक मानसिक पालन करने मात्र से समस्त प्राणियों की मंगल कामनाएं पूर्ण होती हैं ।
साथ ही क्वारी कन्याओं को शीघ्र मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है और सौभाग्यवती स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है । रामचरित मानस में भी वर्णित है:
सिय रघुवीर विवाह जे सप्रेम गावहिं सुनहिं, वैदेहि राम प्रताप ते जन सर्वदा सुख पावहिं ।
शीघ्र विवाह तथा सुंदर वर की प्राप्ति के लिए प्रातः काल एक माला जप करें
सुन सिय सत्य असीस हमारी, पूजहिं मनकामना तुम्हारी ॥